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Maila aanchal (hindi) by renu, phanishwarnath

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Maila Aanchal (Hindi) मलैा आँचल फणी रनाथ रेणु ज म 4 माच, 1921। ज म थान औराही िहंगना नामक गाँव, िजला पिूणया (िबहार)। िह दी कथा सािह य म अ यिधक मह वपणू रचनाकार। दमन और शोषण के िव आजीवन संघषरत। राजनीित म.

मैला आँचल फणी रनाथ रे णु ज म: माच, 1921। ज म- थान: औराही िहंगना नामक गाँव, िजला पिू णया (िबहार)। िह दी कथा-सािह य म अ यिधक मह वपण आजीवन ू रचनाकार। दमन और शोषण के िव संघषरत। राजनीित म सि य िह सेदारी। 1942 के भारतीय वाधीनता-सं ाम म एक मुख सेनानी क भिू मका िनभाई। 1950 म नेपाली जनता को राणाशाही के दमन और अ याचार से मुि िदलाने के िलए वहाँ क सश ा ाि त और राजनीित म जीव त योगदान। 195253 म दीघकालीन रोग तता। इसके बाद राजनीित क अपे ा सािह य-सज ृ न क ओर अिधकािधक झुकाव। 1954 म पहले, िक तु बहचिचत उप यास मैला आँचल का काशन। कथा-सािह य के अित र सं मरण, रे खािच ा और रपोताजश् आिद िवधाओं म भी िलखा। यि और कृितकार-दोन ही प म अ ितम। जीवन के स याकाल म राजनीितक आ दोलन से पुनः गहरा जुड़ाव। जे.पी के साथ पुिलस दमन के िशकार हए और जेल गए। स ा के दमनच के िवरोध म प ी क उपािध का याग। ै , 1977 को देहावसान। 11 अ ल मख कािशत पु तक:मैला आँचल, परती प रकथा, दीघतपा, कलंक मिु , जल ु ु स ू , (उप यास); ठुमरी, अिगनखोर, आिदम राि क महक, एक ावणी दोपहरी क धपू (कहानी-सं ह); ऋणजल धनजल, वन तल ु सी क ग ध, त ु -अ त ु पवू (सं मरण) तथा नेपाली ाि त-कथा ( रपोताज़); रे ण ु रचनावली (सम )। आवरण: िव म नायक माच 1976 म ज मे िव म नायक ने एम.ए (पिटंग) के साथ-साथ व र िच ाकार ी रामे र ब टा के मागदशन म ि वेणी कला संगम म कला क िश ा पाई। कई रा ीय एवं जमनी, ऑ ेिलया, अ का सिहत कई अ तरा ीय दीघाओं म दशनी। 1996 से यावसाियक िच ाकार व काटूिन ट के प म कायरत। कला के े ा म कई रा ीय, अ तरा ीय पुर कार से स मािनत। िच ाकला के अलावा िफ म व नाटक िनदशन एवं लेखन म िवशेष िच। फणी रनाथ रे णु मैला आँचल पहला पु तकालय सं करण राजकमल काशन ा िल से 1954 म कािशत राजकमल पेपरबै स म पहला सं करण: 1984 आठवाँ सं करण: 1992 बारहव आविृ : 2007 नौवाँ सं करण: 2007 © प पराग राय वेणु राजकमल पेपरबै स: उ कृ सािह य के जनसुलभ सं करण राजकमल काशन ा िल 1-बी, नेताजी सुभाष माग नई िद ली-110 002 शाखाएँ : अशोक राजपथ, साइंस काॅलेज के सामने, पटना-800006 पहली मंिजल, दरबारी िब¯ डग, महा मा गांधी माग, इलाहाबाद-211001 वेबसाइट: www.rajkamalprakashan.com ई-मेल: info@rajkamalprakashan.com ारा कािशत आवरण एवं भीतरी रे खांकन: िव म नायक MAILA AANCHAL Novel by Phanishwar Nath Renu ISBN : 978-81-267-0480-4 थम सं करण क भूिमका यह है मैला आँचल, एक आंचिलक उप यास। कथानक है पिू णया। पिू णया िबहार रा य का एक िजला है; इसके एक ओर है नेपाल, दूसरी ओर पािक तान और पि म बंगाल। िविभ न सीमारे खाओं से इसक बनावट मुक मल हो जाती है, जब हम दि खन म स थाल परगना और पि छम म िमिथला क सीमा-रे खाएँ ख च देते ह। मने इसके एक िह से के एक ही गाँव कोिपछड़े गाँव का तीक मानकर-इस उप यास-कथा का े ा बनाया है। इसम फूल भी ह शल ू भी, धल ू भी है, गुलाब भी, क चड़ भी है, च दन भी, सु दरता भी है, कु पता भी-म िकसी से दामन बचाकर िनकल नह पाया। कथा क सारी अ छाइय और बुराइय के साथ सािह य क दहलीज पर आ खड़ा हआ हँ; पता नह अ छा िकया या बुरा। जो भी हो, अपनी िन ा म कमी महसस ू नह करता। -फणी रनाथ ‘रे ण’ु पटना अग त, 1954 िवषय सच ू ी 1खंड 1.एक 2.दो 3.ितन 4.चार 5.पांच 6.छे 7.सात 8.आठ 9.नौ 10.दस 11 यारह 12.बारह 13.तेरह 14.चौदह 15.पं ह 16.सोलह 17.स ह 18.अ ारह 19.उ नीस 20.बीस 21.इ क स 22.बाईस 23.तेईस 24.चौिबस 25.प चीस 26.छ बीस 27.स ाईस 28.अ ाईस 29.उनतीस 30.तीस 31.इकतीस 32.ब ीस 33.ततीस 34.च तीस 35.पतीस 36.छ ीस 37.सतीस 38.अड़तीस 39.उनतालीस 40.चालीस 41.इकतालीस 42.बयालीस 43.ततालीस 44.च तालीस 2खंड 45.एक 46.दो 47.तीन 48.चार 49.पांच 50.छै 51.सात 52.आठ 53.नौ 54.दस 55 यारह 56.बारह 57.तेरह 58.चौदह 59.पं ह 60.सोलह 61.स ह 62.अ ारह 63.उ नीस 64.बीस 65.इ क स 66.बाईस 67.तेईस ‘‘रामदास गुसाई ं आजकल िदन-भर गाँजा पीता है। एक-न-एक िदन वह भी खन ू करे गा।’’ आधा हल, े टर, इ धनुष। ‘‘साला, इ ह लोग के पाप से धरती दलमला रही है। भर ट कर िदया। अब वह मठ है। लालबाग मेला का मीनाबाजार हो गया है। दस-दस कोस का लु चा-लफंगा सब आकर जमा होता है।’’ तहसीलदार साहब आजकल रात म ऊपर के कोठे पर सुम रतदास के साथ कागज-प र ठीक करते रहते ह। िकसी-िकसी िदन सुम रतदास सीढ़ी पर लड़खड़ाकर िगर जाता है। संथाल के घर म चुलाया हआ महआ का दा बड़ा तेज होता है। गगाई माँझी रोज आधा कंटर दे जाता है। कभी-कभी तहसीलदार साहब भी नीचे उतरकर खबू ह ला करते ह; कमली क माँ को, कमली को, सेिबया बढ़ ू ी, सबको गोली से उड़ा देने क धमक देते ह। एक रात को तो इतना मात गए तहसीलदार साहब िक कमली क माँ डर से छाती पीटने लगी थी। ऐसी खराब-खराब गाली जो िज दगी म कभी एक बार भी उनके मँुह से नह सुनी गई, कमली क ब द िकवाड़ के सामने आकर जोर-जोर से बकने लगे। कमली दरवाजा खोलकर बाहर आई और बोली, ‘‘बाबा ! मुझे जो सजा देनी हो दो। मगर माँ को गाली मत दो। उनका या कुसरू ?’’ कमली को देखते ही तहसीलदार साहब का नशा उतर गया, वे ऊपर भागे। उस िदन से माँ कमली को एक िमनट भी अकेली नह छोड़ती है। िबलार को देखकर ब चेवाली िब ली क सतक आँख कैसी तेज हो जाती ह। कमली क माँ को डर है, तहसीलदार साहब िकसी िदन कोई कांड करगे। एक स ाह पहले शराब म एक दवा िमलाकर िदया उ ह ने-‘‘कमली को िपला दो। एकदम खलास हो जाएगी। बड़ी मुि कल से जोगाड़ िकया है।’’ उन पर कैसे िव ास िकया जाए ! न जाने कब या कर द। गाँव के घर-घर म ‘हे भगवान’ क पुकार मची हई है। सुबह से शाम तक रात-भर धानदबनी पर जो मजदूरी िमलती है, खिलहान पर रही बाक मोजर हो जाता है। नाब-धोबी और मोची का खन भी नह जुड़ेगा इस बार। िमल का भ पा बजता है रोज, सुनते नह ? बुला रहा है-‘आओ-ओ-ओ-हो-हो-हो-हो !’’ रात के स नाटे म जोतखी काका क खाँसी बड़ी डरावनी सुनाई पड़ती है- खाँयखाँय। िदन म ठीक दोपहर को अमड़ा गाछ पर बैठकर कागा िजस तरह बोलता है, ठीक उसी तरह खाँएँ-खाँएँ ! खाएगा ! सबको खा जाएगा। िपंगलवणा देवी मशः बढ़ी आ रही है। उसके हजार गण दाँत िनकाले ह, जीभ लपलपा रही है। खाएगा खाएगा ! भयात िशशु क तरह सारा गाँव कुहरे म दुबका हआ थर-थर काँप रहा है ! ‘‘खबरदार-हो-य-य-य-य-खबरदार !’’ तहसीलदार साहब ने खिलहान जोगाने के िलए तीन संथाल को और ड्योढ़ी के पहरा के िलए पहािड़या िसपािहय को बहाल िकया है। एक नाल ब दूक का लैसन िफर िमला है। चिल र कमकार जब तक पकड़ाता नह है, पैसेवाल को रात म न द नह आएगी। पहरे वाल क बोली भी डरावनी मालम ू होती है। आजकल कोठी के जंगल म शाम को ही एक रोशनी जलती है-बहत तेज; िफर रात म और िफर भोर को। बालदेव जी जगे हए ह। शाम को पुरैिनयाँ से लौटे ह उनको न द नह आ रही है। पुरैिनयाँ जाने के समय लछमी ने बावनदास का ब ता, गाँधी जी क िच य वाला ब ता देते हए कहा था, लघुसंका करने के समय पाॅिकट से िनकालकर गांगुली जी से वह भट करने गया था। गांगुली जी ने पछ ू ा था, ‘‘बावनदास ने कुछ िदया है आपको ?’’ ‘‘जी, ऊँहँ नह !’’ बालदेव जी इस जाड़े के मौसम म भी पसीना-पसीना हो गए थे। न जाने य गांगुली जी अचानक उदास हो गए। बालदेव अब जान रहते इन िच य नह दे सकता। इन िच य को देखते ही जमािहरलाल नेह जी बावनदास को मेिन टर बना दगे, नह तो िड ली ज र बुला लगे । य भी आज तक िजतने लीडर आए, सब ने बावनदास से ही हँसकर बात क । उस बार मेिन टर साहे ब आए। बड़े -बड़े लीडर , मारवािड़य ने, वक ल , मुि यार और जम दार ने दसखत करके दरखास िदया, ‘‘भगवतीबाबू सरकारी वक ल को कां ेस का मे बर बहाल कर िदया जाए।’’ मगर मेिन टर साहब ने बावनदास से पछ ू ा, ‘‘ य बावनदास जी ?’’ भगवतीबाबू बहाल नह हए। आिखर बावन क ही बात रही। भगवतीबाबू ने िबयालीस म सुरािजया को फाँसी पर झुलाने के िलए खबू बहस िकया था। और ये िच याँ ! नह , वह हरिगस नह देगा। लछमी को न जाने या हो गया है ! िजस िदन से ब ता िमला, दोन बखत सतसंग के समय िसर छुलाकर सामने रखती थी। रोज च दन और फूल चढ़ाती थी इस पर। कभी-कभी िच य को खोलकर पढ़ती और रोती। पुरैिनयाँ से लौटने पर कुशल-मंगल पछ ू ना तो दूर, पछ ू बैठी, ‘‘गंगुली जी को दे िदया न ?’’ ‘‘हाँ-हाँ दे िदया। इतना ना-परतीत था तो मेरे हाथ म िदया ही य था ?’’ बालदेव जी को न द नह आ रही है। बैलगाड़ी पर पुआल के नीचे ब ता िछपाकर रख िदया है। धन ू ी तो ध-ू धू कर जल रही है। बालदेव जी उठकर बाहर जाते ह। ‘‘होये ! खबरदार !’’ पह िच लाता है। बालदेव जी धन ू ी के पास बैठकर लकिड़य को ज़रा इधर-उधर करते ह, िफर कनखी से लछमी के िबछावन क ओर देखते ह। धीरे से ब ता िनकालकर खोलते ह। उनका सारा देह िसहर रहा है, जीभ सख ू कर काठ हो गई है, मँुह म थक ू नह है। धन ू ी क आग लहलहा उठी है, लकिड़याँ िचट्-िचट् बोलती ह। बालदेव ने एक िच ी िनकाली । ‘‘दुहाई गाँधीबाबा ! बाब रे !’’ लछमी िबछावन पर से ही झपटती है-‘‘गुसाई ं साहे ब ! िछः िछः यह या कर रहे ह ! सतगु हो, िछमा करो ! बालदेव ! पापी, ह यारा !’’ धन ू ी क आग लछमी के कपड़े म लग जाती है। ‘‘लगने दो आग ! मु ी खोिलए। ब ता दीिजए बालदेव जी ! म जलकर मर जाऊँगी, मगर ।’’ बालदेव जी क कसी हई मु ी खुल जाती है। लछमी ब ते को कलेजे से िचपकाकर खड़ी होती है। कमर से िलपटा हआ कपड़ा खुद-ब-खुद िगर पड़ता है। बालदेव जी कमंडल से पानी लेकर छ टते ह। ‘‘हे भगवान ! सतगु हो ! जै गाँधी जी ! बाबा जै बावनदास जी ! ह। हः !’’ लछमी रो रही है। व ाहीन खड़ी लछमी रो रही है। लछमी के हाथ-पाँव जल गए ह; बड़े -बड़े फफोले िनकल आए ह। बालदेव जी अपनी मसहरी म आकर िछप जाते ह। लेटकर सोचते ह-नह , अब यहाँ रहना अ छा नह । वह िकस मँुह से यहाँ रहे गा ? लछमी क ओर अब यह िनगाह उठाकर कभी देख नह सकेगा। वह पुरैिनयाँ जाएगा, वह से च ननप ी चला जाएगा। वह अब अपने गाँव म रहे गा, अपने समाज म, अपनी जाित म रहे गा। जाित बहत बड़ी चीज है। जाित क बात ऐसी है िक सभी बड़े -बड़े लीडर अपनी-अपनी जाित क पाटी म ह।-यह तो राजनीित है ! लछमी या समझेगी ? कासी जी का बरमचारी तो लगता है, अब यह खु ा गाड़े गा ठीक है। नह , लछमी पर जाते-जाते अकलंग लगाकर नह जाएगा वह ‘‘गुसाई ं साहे ब, उिठए। सतसंग का समय हो गया !’’ लछमी कराहते हए उठती है। सारा देह जल गया है। रोज क तरह लछमी उठती है, उठकर बालदेव जी के िबछावन के पास आती है। मसहरी हटाकर बालदेव जी के अँगठ ू म आँख लगाती है, ‘‘सा हे ब-ब दगी !’’ बालदेव जी रोते ह-िससिकयाँ लेकर, ‘‘ल-छ-मी !’’ ‘‘उिठए, गुसाई ं साहे ब !’’ तीन महीने बाद ! ै क एक सुबह। 1948 साल के अ ल इस इलाके म अखितया पटुआ-भदै बानेवाले िकसान को चािहए िक सरू ज उगने से पहले ही खेत को चार चास कर द ! भु कुआ तारा जगमग कर रहा है। कमला नदी के गड्ढे म उसक छाया िझलिमला रही है। लगता है, नीलकमल िखला है। क धे पर हल िलए म रयल बैल को हाँकता हआ जा रहा है िवरं ची कोयरीटोला के सोबरन का तीन बीघा खेत मनकु ा पर जोतता है। मगर इस साल टोटा पड़े गा। उसक सरू त, िदयासलाई क िडिबया म जैसे हलवाहे क छापी रहती है-एकदम दुबला-पतला, कालाकलटू ा, कमर म िब ठी-वैसी ही है। खेलावन अब खुद भस चराता है। तीन बजे रात म भस जैसा चरती है वह िदन-भर म नह चरे गी। अब तो उसको अपना रमना1 भी नह है, इसीिलए ध ा क ओर ले जाता है। खेलावन यादव, यादवटोली का मड़र, भस चराकर लौट रहा है। आसमान साफ हो रहा है। सबके चेहर पर सुबह का काश पड़ता है-झमाई हई ई ंट जैसे चेहरे ! तहसीलदार साहब का ै टर लेकर डलेवर साहब िनकले-भट-भट-भट-भट-भट ! तहसीलदार साहब दोमंिजले क छत पर खड़े , हाथ को पीछे क ओर बाँधे टहल रहे ह। भट-भट-भट-भट-भट ! छ दलकती है। उसी के ताल पर उनका कलेजा धुकधुका रहा है। कौन आ रहा है ? कौन ? सेिबया ? चुप ! धीरे से ! या ? ‘‘ या ?’’ तहसीलदार साहब पछ ू ते ह। ‘‘ऊँ ! बतहा ! नाती भेलह !’’ सेिबया हँसती है। ‘‘चुप ! िज दा है या ।’’ ‘‘ऊँह ! गुजुर-गुजुर हे रैछै !’’ उफ ! भगवान ! तहसीलदार साहब थरथर काँप रहे ह। कमला नदी के उस पार, अधपके र बी क फसल के उस पार, सेमलबाड़ी के जंगल के उस पार आसमान लाल हो गया है। दि खन कोठी के बाग म गुलमुहर क लाल-लाल डािलयाँ दमक उठती ह। ड्योढ़ी के उस पार ब चे के रोने क आवाज नह जान पावे ! इि तजाम हो रहा है। कोई इि तजाम ज़ र हो जाएगा। यिद ब चा जोर से रोए ! ऐं, गला टी प दो। मार डालो ! िद ली म, राजघाट पर, बापू क समािध पर रोज ांजिलयाँ अिपत होती ह। संसार के िकसी भी कोने का, िकसी भी देश का आदमी आता है, वहाँ पहँचकर अपनी िज दगी को साथक समझता है। कलीमु पुर म, नागर नदी के िकनारे , चोरघ ा के पास साँहड़ के पेड़ क डाली से लटकती हई ख र क झोली को िकसी ने शायद टपा िदया है। कौन लेगा ? दुलारच द कापरा ने एक महीने के बाद जाकर देखा, झोली तो लटक रही है डाली से। िजला कां ेस का कोई भी वरकर देखते ही पहचान लेगा-बावनदास क झोली है। झोली कापरा ने टपा दी। मगर झोली का फ ता अभी भी डाली म झल ू रहा है। िकसी दुिखया ने इसे चेथ रया पीर2 समझकर मनौती क है, अपने आँचल का एक खँटू फाड़कर बाँध िदया है-‘‘मनोकामना परू ी हो तो नया चेथरा बधाऊँगी !’’ बहत बड़ी आशा और िव ास के साथ वह िगरह बाँध रही है। दो चीथड़े । चरागाह, िजस पेड़ को पीर समझकर चीथड़ा चढ़ाते ह। पिू णया जेल के सामने बड़ा पुराना वटव ृ है। उसके नीचे सख ू ी हई पि याँ हवा म इधर-उधर उड़ रही ह। वट के बँधाए चबत ू रे के पास एक युवती खड़ी है। साथ म है या ! खाली देह पर एक पुराना गमछा रखे, िसफ जाँिघया पहने एक वाडर साहब बार-बार बा रक से िनकलकर युवती को देखते ह, ‘‘आप डा टर साहे ब क वाइफ ह ?’’ युवती ने गदन िहलाकर कहा-‘‘नह !’’ वाडर साहे ब या क ओर देखते ह। या इस वाडर को जानता है-बड़ा बेकूफ है। हमेसा खराब-खराब बात बोलता रहता है। वह मँुह फेर लेता है। ै ी हट जेल का लौह-कपाट झनझनाकर खुलता है। युवती के चेहरे पर से ती ा क बेचन जाती है। उसके चेहरे पर हाल ही म जो छोटी-छोटी झु रयाँ पड़ गई थ धीरे -धीरे िखल पड़ती ह। डा टर इस तरह मु कराता, डे ग बढ़ाता, हाथ म छोटा बैग िलए आ रहा है, मानो लेबोरे टरी से छु ी पाकर लौटा है। या का चेहरा देखने कािबल हो रहा है। वह अपने अ दर म उठनेवाले खुशी के आवेग को दबाता है, िक तु उसका मँुह अ वाभािवक प से खुला हआ है। ‘‘तुम भी िकसी जेल म थ या ?’’ ‘‘नह बाबा ! ऐसी िक मत लेके नह आई। झुको ! बाबा िव नाथ का साद है !’’ युवती माल से सख ू े बेलप र और फूल िनकालकर डा टर शा त के िसर से छुलाती है। ‘‘तब या या हाल है ? ममता ! या से बातचीत हई है या नह ?’’ ‘‘सुबह से और कर या रही हँ !’’ ममता हँसते हए कहती है, ‘‘घोड़ा-गाड़ी बुलाइए या रचाँद सरकार !’’ या हँसता-लँगड़ाता कचहरी क ओर जाता है। ‘‘तीन बजे रात म पहँची पिू णया टेशन। योित-दी तो आजकल यह ह न ! उनके डे रे पर गई, सुबह उठकर कल टर साहब के बँगले पर गई। द ता आडर साथ म था तु हारी रलीज़ का। योित-दी ने कहा, यिद कल टर साहब टूर पर िनकल गए तो िफर देर हो जा सकती है ! तो अभी कहाँ चलना है ?’’ ममता मु कराती है। ‘‘तुम मेरीगंज नह चलोगी ?’’ ‘‘ य नह ? मने प ह िदन क छु ी ले ली है।’’ एस.पी साहब का चपरासी खत लेकर आया है। एस.पी साहब ने डा टर को अपने बँगले पर िनमि ात िकया है। तहसीलदार साहब अब नीचे नह उतरते ह। ऊपर ही रहते ह। िदन भर ताड़ी पीकर रहते ह, रात म संथालटोली का महआ का रस। कभी होश म नह रहते ह। सुम रतदास बेतार से रोज पछ ू ते ह, ‘‘सोचा उपाय ?’’ ‘‘मेरा तो मगज नह काम कर रहा है।’’ ‘‘नह काम कर रहा है, तो लो एक िगलास। िपयो साले ! यिद कह बोले तो देख लो ब दूक !’’ कमली क माँ दरवाजा कभी नह खोलती। कुएँ क ओर खुलनेवाला दरवाजा कभीकभी खोलती है। कमरे के अ धकार म, एक कोने म, एक छोटा-सा दीप जल रहा है। कमली क गोदी म उसका िशशु कपड़े म िलपटा सो रहा है। कमली कजरौटी म काजल पार रही है। भट-भट भर-र एक टेशन वैगन पिू णया-मेरीगंज रोड पर भागी जा रही है। चलते समय ममता क नजर बचाकर या ने डा टर के हाथ म एक िलफाफा िदया है। आगे ाइवर क बगल म बैठा हआ या कभी-कभी गदन उलटकर पीछे क ओर देखता है। डा टर साहब िच ी पढ़ रहे ह। ‘‘ ाणनाथ !’’ कमला क िच ी है-एक स ाह पहले क िच ी। ‘‘ ाणनाथ ! ‘‘पता नह , समय पर यह प ा तुमको िमले या नह । देर या सबेर, कभी भी मेरी यह िच ी तु ह िमल ही जाएगी, मुझे परू ा िव ास है। तुम मेरे पास दौड़े आओगे ! तुम जानते हो, अब मुझे डर लगने लगा है। तु हारा तु हारा कैसे िलखँ ू ? माँ कहती है, यिद तुम िकसी तरह बाबा को िलख दो या मालम ू करा दो िक मेरी होनेवाली स तान के तुम िपता हो, तो म जी जाऊँ। िव ास नह करती माँ ! बाबज ू ी अब एकदम पागल हो गए ह। न जाने कब या हो ! तु हारी िकताब ने मुझे बहत-कुछ िसखाया है। मुझे िकतना बड़ा सहारा िमला है तु हारी िकताब से ! लेिकन अब एक नई िकताब चािहए िजसके प ृ -प ृ म िलखा हआ हो-कमला ! िव ास करो ! डरो मत ! जो होगा, मंगलमय होगा ।’’ डा टर एक ही साँस म इतना पढ़ गया। इसके बाद उसने ममता क ओर िनगाह डाली। रात-भर क जगी ममता गाड़ी के िहचकोल पर मीठी झपक ले रही है। चोट लग जाएगी ! ‘‘और िकतनी दूर ?’’ ममता जागकर पछ ू ती है। ‘‘और एक घंटा,’’ या कहता है। डा टर आगे पढ़ता है-‘‘ बाबा तु हारे ब चे को मार डालगे ।’’ ‘‘नह ! नह !’’ ‘‘ऐं ?’’ ममता पछ ू ती है, ‘‘ या है ?’’ डा टर ममता के हाथ म प ा देकर बाहर क ओर देखता है। या गदन उलट-उलटकर डा टर साहब क ओर देखता है। ममता आँख मलते हए पढ़ती है-‘‘ ाणनाथ ! िकसक िच ी है ? कमला क ?’’ ममता पढ़ रही है। डा टर ने एक बार ममता क ओर देखा-ममता क न द से माती आँख एक बार चमकती ह। प ा शेष करके वह पछ ू ती है, ‘‘और िकतनी दूर ?’’ ‘‘अब और एक घंटा। रा ता क चा है !’’ ‘‘और वह गणेश कहाँ है ?’’ ‘‘उसक तो एक ल बी कहानी है। समाज मि दर म उसे रखवा िदया था। न जाने कहाँ से उसके एक चाचा ऊपर हो गए। बहत बखेड़ा हआ, जाित-धम का बवंडर उठाया। मने भी कह िदया ले जाओ !’’ ‘‘उससे भस चरवाता है,’’ या कहता है, ‘‘उसके गाँव का आदमी बराबर कचहरी आता है न !’’ ‘‘मने मेिडकल गजट म तु हारी रपोट दे दी है। एक संि रपोट है-जंगली जड़ी-बटू ी और यहाँ के गाँव म चिलत टोटक के बारे म-तु हारी िच य से साट करके िलख िदया।’’ ‘‘लेिकन, मने तो फै सला कर िलया है, रसच असफल होने क घोषणा कर दँूगा।’’ ‘‘कोई रसच कभी असफल नह होता है डा टर ! तुमने कम-से-कम िम ी को तो पहचाना है। िम ी और मनु य से मुह बत। छोटी बात नह ।’’ डा टर ममता क ओर देखता है-एकटक। ममता बाहर क ओर देख रही है- िवशाल मैदान ! वं या धरती ! यही है वह मशहर मैदान-नेपाल से शु होकर गंगा िकनारे तकवीरान, धिू मल अंचल। मैदान क सख ू ी हई दूब म चरवाह ने आग लगा दी है-पंि ब दीप जैसी लगती है दूर से। तड़ब ना के ताड़ क फुगनी पर डूबते हए सरू ज क लाली मशः मटमैली हो रही है। भर-र-र ‘‘सुम रतदास ! अभी ै टर य चला रहा है ? कहाँ ले जा रहा है, ाइवर से पछ ू ो तो।’’ तहसीलदार साहब दोमंिजले क छत पर से पुकारते ह। ‘‘ ै टर नह । मोटर है, मोटर !’’ ‘‘मोटर ? कौन है ?’’ ‘‘डागडर !’’ ‘‘कौन डा टर ?’’ सुम रतदास दौड़कर छत पर जाता है, ‘‘अपने डागडरबाब।ू साथ म एक जलाना है। या भी है।’’ तहसीलदार साहब हाथ म ब दूक लेते ह। सुम रतदास थर-थर काँपते हए कहता है-‘‘दुहाई ! ऐसा काम मत क िजए।’’ ‘‘ऐसा काम नह क ँ ? तब या क ँ ?’’ या पुकारता है, ‘‘मौसी ! ओ मौसी !’’ ‘‘कौन ? या ?’’ माँ दरवाजे क फाँक से कहती है, ‘‘ या है ?’’ ‘‘डागडरबाबू !’’ ‘‘ऐह-ऐह-आँ-आँ,’’ सौर-गहृ म कमली का न हा रोता है, ‘‘ऐं-ह-ऐं-हाँ !’’ ममता ज दी से िकवाड़ के पास जाकर कहती है, ‘‘िकवाड़ खोलो मौसी ! म हँ ममता। खोलो तो पहले !’’ िकवाड़ के प ले खुल जाते ह। ममता सौर-गहृ के अ दर चली जाती है। डा टर अकेला, चुपचाप खड़ा है। सीढ़ी पर खड़ाऊँ क आवाज होती है-भारी-भरकम आवाज ! कोई जोर-जोर से पैर पलटकर चल रहा है। ‘‘कौन है ? डा टर ?’’ तहसीलदार साहब िच लाते ह। ‘‘आइए ! बैिठए डागडरबाब।ू ’’ सुम रतदास मसढ़ ू े िनकालकर हँसता है, ‘‘आइए !’’ ‘‘नह ! सुम रतदास, इससे पछ ू ो, कहाँ आया है ? िकसके यहाँ आया है ? या करने आया है ? या लेने आया है ? पछ ू ो !’’ सुम रतदास बेतार डा टर के पास आकर कनखी और इशार से समझाता है, ‘‘आजकल जरा यादा ढलने लगी है न इसीिलए !’’ सौर-गहृ के दरवाजे क फाँक से कमली क माँ कहती है, ‘‘कमली के बाबू ! कैसे हो तुम ? जमाई को ’’ ‘‘जमाई को या ? अपने जमाई को य नह कहती हो ? वह मेरा पैर छूकर णाम कहाँ करता है ?’’ डा टर तहसीलदार क चरण-धिू ल लेता है। तहसीलदार साहब अचानक फूटकर रो पड़ते ह, डा टर साहब को बाँह म जकड़कर रोते ह, ‘‘मेरा बेटा ! बाबू ! मेरा बेटा !’’ सुम रतदास बेतार ने रात म ही घर-घर खबर पहँचा दी-‘‘कमली क सादी तो पहले ही डागडर बाबू से हो गई थी। तुम लोग तो जानते हो ! पाँच पंच को जानकर जब-जब सादी क बात प क हई, एक-न-एक िविघन पड़ गया। इसीिलए कासी के पंिडत ने गंधरब-िबवाह कराने को कहा। गंधरब िबवाह क बात िकसी को मालम ू नह होने दी जाती है। यिद ब चा हो तो सबसे पहले बाप उसको देखेगा तब और लोग। डागडरबाबू आ गए ह। अब कल छ ी के भोज का िनम ाण देने आया हँ तुम लोग को। कल सुबह से ही आनन-बधावा मचेगा।’’ ‘‘इ स् ! यह तो िख सा-कहानी जैसा हो गया ! एकदम िकसी को पता नह !’’ ा णटोली के पुरोिहत देवानन झा ने लोग से कहा, ‘‘अँगरे जी फै सनवाल का सात खन ू माफ है।’’ जोतखी जी के कान म बात पड़ी; उ ह ने घण ृ ा से मँुह िसकोड़ िलया। खेलावन यादव ने कहा, ‘‘पैसावाला अधरम भी करे गा तो वह धरम ही होगा।’’ लेिकन िनम ाण अ वीकार करने क िह मत िकसी म नह । सुबह को गाँव के चमार ने आकर नाच-नाचकर ढोल बजाना शु िकया। औरत झुंड बाँध-बाँधकर सोहर गाती हई आने लग । लेिकन सबके चेहरे पर एक उदासी एक मनहस काली रे खा िखंची हई है। मन म रं ग नह । तहसीलदार साहब बहत देर तक अपने कमरे म चुपचाप बैठकर कुछ सोचते ह; िफर बाहर आकर कहते ह, ‘‘सुम रतदास ! लोग से कह दो हरे क प रवार को पाँच बीघा के दर से जमीन म लौटा दँूगा। साँझ पड़ते-पड़ते म सब कागज-प र ठीक कर लेता हँ। और संथालटोली म जाकर कहो वे लोग भी आकर रसीद ले जाएँ । एक पैसा सलामी या नजराना, कुछ भी नह । अरे , म य दँूगा ? दे रहा है नया मािलक ! मािलक साहब का हकुम है, सुनते हो नह ! रो रहा है वह ! वह हकुम दे रहा है। लौटा दो ! दे दो, खेलावन को उसक जमीन का सब धान दे दो।’’ डा टर शा त और ममता क आँख चार होती ह। ‘‘मँुह या देखते हो ? मुझे पागल समझते हो ? ठीक है, पागल य नह समझोगे ? योगे र कृ ण ने अपनी सारी िव ाबुि लगाकर कोिशश क , मगर दुय धन ने साफ कह िदया-सईू क नोक पर िजतनी िम ी चढ़ती है उतनी भी नह दँूगा। जमीन ! धरती ! एक इंच जमीन के िलए हायकोठ तक मुकदमा लड़ते ह लोग ! और म सौ बीघे जमीन दे रहा हँ। पागल तो तुम लोग हो ! अरे , यह जमीन तो उ ह िकसान क है, नीलाम क हई, ज त क हई, उ ह वापस दे रहा हँ। म कहता हँ, ऐलान कर दो, मािलक का हकुम है !’’ जै ! जै ! जै हो ! बोिलए ेम से-महतमा जी क जै ! िडग-िडग-िडडग। रं ग- रं ग-ता-िधन-ता। डा-िड गा-डा-िड गा ! झुमुर-झुमुर हरर-हरर-हरर ! हाँ अब अब ठीक है। अब देखो, सब चेहर पर, मुदा चमड़ पर लाली लौट रही है। सैकड़ जोड़ी आँख खुशी से चमक उठती ह, मानो दीप जले ह । कुमार नीलो पल क आज बरही है। हाँ, ममता ने कमला के पु ा को नाम िदया है-कुमार नीलो पल। डा टर ने आज पहली बार अपने पु ा को गोद म िलया और देखा है। दुबला-पतला, पीले रं ग का र -मांस का िपंड ! ममता कहती है, ‘‘पटना ले चलो। एक महीने म ही तु हारा बेटा लाल हो जाएगा !’’ डा टर ने सैकड़ ‘िडिलवरी’ केस िकए ह। िक तु कुमार नीलो पल ! कमला का पीला चेहरा लाज से लाल हो गया था। डा टर क गोद म िशशु को देते व उसक बड़ी-बड़ी आख क पलक झुक हई थ । उसके ललाट पर िस दूर का बड़ा-सा टीप जगमगा रहा था अँधेरे म खड़ी ‘िस हिटड’ त वीर-सी खड़ी माँ हाथ बढ़ाकर एक भयावनी छाया के हाथ म अपने िशशु को स प रही है। अँधेरा ! भयावनी छाया ! नह , नह । डा टर ने अपने बाएँ हाथ क उँ गिलय से नीलो पल के ‘हाट’ क धड़कन का अनुभव िकया था, ‘‘अहा ! न हा-सा िदल, धुक-धुक कर रहा है।’’ सौर-गहृ म, बारह िदन के िशशु क ल बी उ , सु दर वा य, िव ाबुि और धनस पि के िलए मंगलगीत गाए जा रहे ह। डा टर जगा हआ है। उसका रसच ? ममता कहती है, ‘‘असफल नह हआ है। िम ी और मनु य से इतनी गहरी मुह बत िकसी ‘लेबोरे टरी’ म नह बनती।’’ लेबोरे टरी ! िवशाल योगशाला। ऊँची चहारदीवारी म ब द योगशाला। सा ा यलोभी शासक क संगीन के साये म वै ािनक के दल खोज कर रहे ह, योग कर रहे ह। गंजी खोपिड़य पर लाल-हरी रोशनी पड़ रही है। मारा मक, िव वंसक और सवनाशा शि य के सि म ण से एक ऐसे बम क रचना हो रही है जो सारी प ृ वी को हवा के प म प रणत कर देगा ऐटम ेक कर रहा है मकड़ी के जाल क तरह ! चार ओर एक महाअ धकार ! सब वा प ! कृित-पु ष अंड-िपंड ! िम ी और मनु य के शुभिच तक क छोटी-सी टोली अँधेरे म टटोल रही है। अँधेरे म वे आपस म टकराते ह। .वेदा त भौितकवाद सापे वाद मानवतावाद ! िहंसा से जजर कृित रो रही है। याध के तीर से ज मी िहरण-शावक-सी मानवता को पनाह कहाँ िमले ? हा-हा-हा ! अ हास ! याध के अ हास से आकाश िहल रहा है। छोटा-सा, न हा-सा िहरण हाँफ रहा है। छोटे फेफड़े क तेज धुकधुक ! नीलो पल ! नह -नह ! यह अँधेरा नह रहे गा। मानवता के पुजा रय क सि मिलत वाणी गँज ू ती है-पिव ा वाणी ! उ ह काश िमल गया है। तेजोमय ! त-िव त प ृ वी के घाव पर शीतल च दन लेप रहा है। ेम और अिहंसा क साधना सफल हो चुक है। िफर कैसा भय ! िवधाता क सिृ म मानव ही सबसे बढ़कर शि शाली है। उसको परािजत करना अस भव है, चंड शि शाली बम से भी नह पागलो ! आदमी आदमी है, िगनीिपग नह । सबा र ऊपर मानुस स य ! अनेकव ानयनमनेका त ु दशनम।् अनेक िद याभरणं िद यानेको तायध ु म।् िदिव सय ू सह । ममता गा रही है ! सुबह हो रही है। बगल के कमरे म तहसीलदार साहब खराटे ले रहे ह। डा टर उठकर िखड़िकयाँ खोल देता है। मटमैली, अँिधयारी म कोठी का बाग िठठका हआ िकसी क ती ा कर रहा है। गुलमुहर, अमलतास और योजनग धा क नई किलयाँ मु कराने को तैयार ह। ना तं न म यं न पुन तवािदं । ‘‘ शा त !’’ ममता मु कराती हई कमरे म वेश करती है-सुबह को हौले-हौले बहानेवाली हवा-जैसी। स ः नाता ममता के भीगे-िबखरे केशगु छ को डा टर छू लेता है। ‘‘अरे धे ् ! औरत का भीगा केश नह छूना चािहए। दोष होता है। पछ ू ती हँ, चाय िपयोगे ? कुमार साहब का दूध गम हो रहा है। लगता है, रात-भर जगे रहे हो। कु ली कर लो। म चाय ले आती हँ।’’ ममता मु कराती हई जाती है। बेचारी ममता क िज दगी का एकमा ा िवलास-चाय ! शीला कहती थी एक बार, ‘‘ममता-दी चाय पीने का बहाना ढूँढ़ती रहती है। िदन-भर म दस-प ह याली ’’ चाय क याली शा त के हाथ म देते हए ममता पछ ू ती है, ‘‘पढ़ गए महा मा जी क आिखरी लालसा ? म तो कहती हँ, यह वह महा काश है, िजसक रोशनी म दुिनया िनभय हजार बरस का सफर तय कर सकती है।’’ ‘‘ममता ! म िफर काम शु क ँ गा-यह , इसी गाँव म। म यार क खेती करना चाहता हँ। आँसू से भीगी हई धरती पर यार के पौधे लहलहाएँ गे। म साधना क ँ गा, ामवािसनी भारतमाता के मैले आँचल तले ! कम-से-कम एक ही गाँव के कुछ ािणय के मुरझाए ओठ पर मु कराहट लौटा सकँ ू , उनके दय म आशा और िव ास को िति त कर सकँ ू ।’’ ममता हँसती है-‘‘मन करता है, िकसी को आँचल पसारकर आशीवाद दँू- तुम सफल होओ ! मन करता है, िकसी कमयोगी के बढ़े हए चरण क धिू ल लेकर कहँ ’’ कहकर ममता शा त के पैर क ओर हाथ बढ़ाती है। ‘‘ममता !’’ ‘‘ममता-दी ! लो इसे। दूध फकता है।’’ कमली अपने िशशु को गोदी म लेकर हँसती हई आती है। ‘‘दो ! कैसे फकता है ? कैसे िपलाती हो ? बोतल दो।’’ ममता आलथी-पालथी मारकर बैठ जाती है और ब चे को गोद म ले लेती है। ‘‘तुमने टे लेट खा िलया कमला ? खा लो !’’ शा त चुपचाप ममता को देख रहा है। शरतबाबू के उप यास क यह नारी अपने िव ास पर अिडग होकर आज भी आगे बढ़ रही है; प बदल दो, नाम बदल दो, समय बदल दो, जगह बदल दो, पर यह कभी बदल नह सकती। कमली पछ ू ती है, ‘‘ या भी पटना चलेगा ?’’ ‘‘हाँ,’’ ममता संि -सा उ र देती है। ‘‘आएँ -ऐं ऐं ,’’ नीलू रोता है। ‘‘ना-ना । पी लो बाबू ! राजा ! सोना ! मािनक ! नीलू ! रोओ मत ! अब रोने क या बात है यारे ?’’ ममता हँसती है। कलीमु पुर घाट पर चेथ रया-पीर म िकसी ने मानत करके एक चीथड़ा और लटका िदया। ... www.rajkamalprakashan.com ई-मेल: info@rajkamalprakashan.com ारा कािशत आवरण एवं भीतरी रे खांकन: िव म नायक MAILA AANCHAL Novel by Phanishwar Nath Renu ISBN : 978-81-267-0480-4 थम सं करण क भूिमका यह है मैला आँचल, एक

Ngày đăng: 12/09/2022, 11:10